I Think, First Thought (मैं सोचता हूँ अध्याय 1)

An Eye IS The Difference

“खुद को कभी देखा है, आईने में जरूर देखा होगा। भला कौन नहीं देखता। मगर कभी ये सवाल आया है की आखिर मैं इस शक्ल को पा सकता हूँ?

महज दो डीएनए ने मिल कर मुझे ऐसा बना दिया की मैं ऐसा दिखने लगा। अगर ये ख्याल आज आपके दिमाग में आया है तो सही समय पर आया है। क्योंकि इस किताब की पहली श्रंख्ला में मैं बस यही बताना चाहता हूँ की आखिर हम देखते क्यों है, आखिर हमें दिखता क्यों है। क्या इसके पीछे की वजह है की हम जान पाए की हमारे वातावरण में क्या हो रहा है, या फिर ऐन ऑय इस द डिफरेंस जो इस श्रंख्ला का पहला अध्याय है।

सालों से इंसानों ने अपनी आँखों से ना जाने कैसे हालत और मंजरों को देखा है। मगर ये समय में बीत गया की किसने क्या देखा और क्या सीख ली। अब दरअसल बात ये है की भला इतने सब बीत गया, किसने क्या देखा, क्या नहीं देखा, इसका हिसाब अगर कोई रखता है तो वो है खुदा, भगवान। और अगर भगवान सब कुछ देख रहा है तो कैसे? ये सवाल बहुत बड़ा है और इसका एक सरल सा जवाब है हमारी आँखों से। क्योंकि अगर भगवान ना होते हुए भी है, तो कैसे? और बहुतों ने सुना है की भगवान कण-कण में है, तो फिर हम में भी है। और अगर हम में है तो देखता भी हमारी आंखों से ही होगा। मगर दिलचस्प बात ये है की हमें ये मालूम नहीं है, अगर होता तो हम इंसान होकर दूसरे इंसान को इंसान ही समझते, ना की कोई पशु।

और हैरत की बात ये है कि आज कल हम में से कुछ इंसान दूसरों के साथ पशुओं से भी बदतर सलूक करते हैं।” “इल्म ये है कि इंसान इंसानियत भूल गया है और सबको कहता रहता है कि आई ऍम एडुकेटेड, आखिर ये कौन सी पढ़ाई है जो इंसान को अलग बनाती है। और जिसने ये पढ़ाई बनाई है, वो कैसा इंसान रहा होगा जो ये समझता होगा कि एजुकेशन इस एवरीथिंग है। मान लेते हैं कि पढ़ाई बहुत जरूरी है जीवन जीने के लिए, या कहूं कि रोजगार कमाने के लिए, मगर इंसान बनने के लिए कौन सी पढ़ाई करनी पड़ती है जिसे पढ़ कर मैं भी बोल सकूँ कि आई ऍम एडुकेटेड, आखिर ये क्या पढ़ाई है जिसे पढ़ कर हम अलग हो जाते हैं और अगर इसे पढ़कर अलग होना ही है, तो मार्स पर जा कर रहना चाहिए क्योंकि हम अलग जो हैं, आखिर भला किस व्यक्ति ने बोला है कि डिफरेंस इस एवरीथिंग क्या होता है अलग हो कर क्योंकि भगवान के सामने हम पढ़े-लिखे वेल एडुकेटेड हो या नहीं, हम सब एक जैसे हैं यहाँ तक कि मैं भी। तो ये एजुकेशन भला कहाँ से हमे अलग बनाती है, अगर कुछ बनाता है तो वो है ऐन ऑय इस द डिफरेंस।

इसीलिए अपनी आंखों का सही इस्तेमाल कीजिए क्योंकि आँखें ही हैं सबसे पहली इंद्री, और कैसे इस इंद्री से आप बन सकते हैं डिफरेंट।”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *