त्र्यम्बकं यजामहे इन शब्दों को सुनकर बड़े रोग हरते हैं मनुष्य के। इसका यथार्थ इस पुराण में दार्शनिक रूप से विस्तारित किया गया है।
चक्र है इस धरा पर, ऐसा चक्र जिससे कोई भी अछूता नहीं रहा। युगों-युगों से अनुभूतियाँ स्पष्ट रूप में देखने को मिली हैं, और इन्हीं अनुभूतियों को जीवन का यथार्थ स्वरूप कहा गया है। इन यथार्थों को एक माला में पिरोकर कई ऐसी श्रृंखलाएँ बनाई गई हैं, जिन्हें आज के समय में हम ग्रंथ कहते हैं। ये वो अनुभूतियाँ हैं जिन्हें महसूस किया जाता है और जीवन के पटल पर जिया जाता है। महाभारत इन्हीं अनुभूतियों में से एक है। यह कोई रचना नहीं है, यह जीवन की अनुभूतियों को एक श्रृंखला में पिरोकर एक सार्थक जीवन जीने का सफल मंत्र बनाया गया है। इन अनुभूतियों में से सबसे सर्वोपरि है कृष्ण के मुख से निकली श्रीमद भगवद गीता का वह उपदेश, जिसे सुनकर अर्जुन ने वह किया जिसे धर्म कहा जाता है।
धर्म बड़ा विशेष रूप लेता है जब इसे जीवन जीने के लिए उपयोग किया जाए। धर्म किसी को जाति के आधार पर नामांकित नहीं करता, बल्कि जीवन को कैसे जीना है, इसे एक संयोजक के रूप में एक सार्थक रास्ता बताता है। इस पुराण में भगवान विष्णु नारायण के प्रतिबिंब को एक पिता के रूप में दर्शाया गया है, और जीवन शुरू होने से पहले के कुछ आवरणों को इस पुराण में लिखा गया है। इन आवरणों को समझाने हेतु इस पुराण में भगवान श्री विष्णु नारायण के पुत्र की संरचना के माध्यम से एक नए चक्र का दार्शनिक विश्लेषण किया गया है।
अपितु, यह सत्य है कि यह कालचक्र समाप्त होने को है और एक नया कालचक्र शुरू होने की प्रक्रिया में है, जिसे भगवान विष्णु खुद संचालित नहीं करेंगे, बल्कि उनके पुत्र इसका संचालन करेंगे। हमने कुछ अनुभूतियों के आधार पर एक श्रृंखला में पिरोकर एक पुराण की रचना की है, जिसका नाम है ‘गौरव पुराण’। इस पुराण में भगवान विष्णु नारायण के पुत्र के गौरव की एक छवि दर्शाई गई है, जिसे पढ़कर आप स्वयं को उनका पुत्र मानने लगेंगे, जो कि हम सभी हैं, क्योंकि पूरा संसार ही उनका पुत्र है।
पुराण में दर्शाई गई कुछ अनुभूतियाँ आपको चरित्र दोष का संज्ञान देंगी, और कुछ अनुभूतियाँ आपको सक्षम रूप से अपने कर्म करने के लिए प्रेरित करेंगी। जब आप अपने चरित्र के दोषों से ऊपर उठकर कर्म करते हैं, तो इसे ‘गौरव पुराण’ कहते हैं। यह पुराण सभी मनुष्यों के जीवन पर आधारित है, जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को सुनाया था, जब भगवान विष्णु नारायण अपना अंतिम अवतार लेकर धरती से वापस बैकुंठ गए थे।
इसकी संरचना स्वामी श्री मनीष देव सुयाल जी के पवित्र हाथों से हुई है, जिन्हें उनके पूज्य गुरुजी श्री महेशानंद देव सुयाल जी ने अपने मुख से यह पुराण सुनाई और इसे अपने अनुयायियों तक पहुँचाने के लिए हिंदी भाषा में अनुवादित करने का निर्देश दिया। इसका उद्देश्य आज के समय के लोगों के लिए इसे पढ़ने में उपयोगी बनाना है और इंसान को इंसान से सुरक्षित करने का मार्ग दिखाना है।