Manish Kumar Suyal

गौरव पुराण सप्त श्लोकस्य महात्म्य

गौरव पुराण सप्त श्लोकस्य महात्म्य

नास्मि विस्मृतः, भवाञ् न जानाति समयस्य। गौरव पुराण सप्त श्लोकस्य भगवान् श्री हरी विष्णु क्षण भर के लिए आश्चर्यचकित हो जाते हैं। फिर एक मुस्कान के साथ कहते हैं, “देवी, आप धन्य हैं जो आपने इस समय के असली रूप को मुझे दिखा दिया।” देवी थोड़ा आश्चर्य के साथ कहती हैं, “हे देव, मैंने ऐसा […]

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"गौरव पुराण" षष्ठ श्लोक महात्म्य

“गौरव पुराण” षष्ठ श्लोक महात्म्य

||मम सर्वश्रेष्ठस्य भोजनं|| ||भोजनं मम आधारं|| ||आधारं मम ग्यानः|| ||ग्यानः उपार्जितो अस्मि गुरुं|| ||गुरुं मम सर्वोच स्थानं|| “गौरव पुराण” षष्ठ श्लोक महात्म्य माता लक्ष्मी जब भगवान नारायण की आंखों में देखती हैं, तो माता उनसे पूछती हैं, “हे भगवन, आपकी आँखों में ये अश्रु क्यों हैं? ऐसा क्या है जिसे केवल आपने समझा और इतने

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गौरव पुराण पंचम श्लोक महात्म्य।

गौरव पुराण पंचम श्लोक महात्म्य

शिष्यस्य भोजनं अपि तु ज्ञानः। इन तीन अक्षरों में दुनिया सम्मिलित है, और यही तीन अक्षर पूरी दुनिया का आधार हैं, जिसे परमात्मा और आत्मन का एक अनोखा सम्बन्ध बताया गया है। इन तीन अक्षरों को यदि आप समझना चाहें, तो एक छोटे से प्रश्न का उत्तर दें, जिसे माणिक जी अपने आश्रम में पहुँच

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गौरव पुराण चतुर्थ श्लोक महात्म्य

गौरव पुराण चतुर्थ श्लोक महात्म्य

। । न अहं त्वं ।। समय की परिकल्पना हेतु भगवान विष्णु नारायण ने माता लक्ष्मी को एक छोटी सी कथा सुनाई, जिसे इस श्लोक के द्वारा समझा जा सकता है और इसके साथ इसका महात्म्य भी नीचे दिया गया है। ऋषि माणिक अपनी यात्रा पर एक गाँव में जा कर ठहरे और रात को

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गौरव पुराण तृतीय श्लोक महात्म्य

गौरव पुराण तृतीय श्लोक महात्म्य

।।समयस्य कदाचिद् अपितु समयस्य ।। युगों-युगों से एक धारा बह रही है, और यह धारा है समय की। इस धारा में न जाने कितने लोग, दुनिया, और रहस्य बह गए। यह धारा कभी नहीं रुकेगी, क्योंकि इसकी कभी शुरुआत ही नहीं हुई। जो बना है, उसे खत्म होना ही है, लेकिन यह धारा, जिसे किसी

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गौरव पुराण द्वितीय श्लोक महात्म्य

गौरव पुराण द्वितीय श्लोक महात्म्य

।। यजः भूम्याः सहस्रतीर्थानां परमं तीर्थं मम जीवनस्य ।। “वीरभद्र जब भगवान शिव के साथ द्वंद कर रहे थे, तब समीप दो हंसों का एक जोड़ा बैठा हुआ था और दोनों आपस में वार्तालाप कर रहे थे। हंसिनी हंस से पूछती है, ‘यह कैसी विडंबना है कि एक ही शक्ति के दो स्वरूप आमने-सामने हैं,

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गौरव पुराण

गौरव पुराण

त्र्यम्बकं यजामहे इन शब्दों को सुनकर बड़े रोग हरते हैं मनुष्य के। इसका यथार्थ इस पुराण में दार्शनिक रूप से विस्तारित किया गया है। चक्र है इस धरा पर, ऐसा चक्र जिससे कोई भी अछूता नहीं रहा। युगों-युगों से अनुभूतियाँ स्पष्ट रूप में देखने को मिली हैं, और इन्हीं अनुभूतियों को जीवन का यथार्थ स्वरूप

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