गुंबद देखकर अचानक सोचने लगा कि यह भला क्या चीज़ है। फिर उसके नीचे बैठकर उसकी छाया में उस पर की हुई कलाकारी को देखने लगा।
अचानक से आँखों के आगे अंधेरा छा गया। तबियत थोड़ी नजर दिखी। फिर उठा, एक सेब खाया और फिर उस कलाकारी में खो गया। उसकी नक़्क़ाशी की बारीकियां इतनी हेरत भरी थीं कि सोचकर दंग रह गया। अगर यह किसी ने बनाया है तो उसने क्या पढ़ाई की होगी, क्या तामील ली होगी। फिर चलते-चलते समुंदर के किनारे आया और सूरज को ढलते हुए सागर पर एक नारंगी चादर सी थी, बेहद खूबसूरत दृश्य था। फिर एक पत्थर पर बैठकर एक ख़्याल आया, जिसे आज इस किताब के माध्यम से लेखक महोदय लोगों तक पहुँचा रहे हैं और हैरत की बात यह है कि ये जो कुछ लेखक ने लिखा है, वो सब हमने देखा है और जिस अधूरे पन से आप इसे पढ़ रहे हैं, शायद आप आधा महसूस कर पा रहे हों कि लेखक ने क्या देखा और जो देखा, वो आधा लिख पाया और जो आप पढ़ रहे हैं, वो उस आधे का आधा समझ पा रहे होंगे। इसी प्रश्न को लेखक इस किताब के जरिये बयान कर रहे हैं कि दरअसल मामला क्या है।
इस किताब में कहानिया हैं, जिसे पढ़कर आप रोमांचित शायद नहीं हों और न ही इसमें कोई सबक है जिसे पढ़कर आप अपने जीवन में इस्तेमाल कर पा रहे हों और न ही कोई ऐसी चीज़ है जिससे आपका जीवन सुधर जाएगा। क्योंकि जीवन किसी का नहीं सुधारा चाहे वो खुद भगवान क्यों न हो। क्योंकि जीवन है ही कुछ ऐसा जिसे जिया ही गलती करके है, क्योंकि हमें नहीं पता की सुधारा या अच्छा जीवन क्या है और शायद इसीलिए जीवन खोज है और इस पुस्तक का नाम भी है “खोज।” तो आइए शुरू करते हैं एक खोज जो पता नहीं, हमें कहाँ लेकर जाए।”