गौरव पुराण तृतीय श्लोक महात्म्य

।।समयस्य कदाचिद् अपितु समयस्य ।।

युगों-युगों से एक धारा बह रही है, और यह धारा है समय की। इस धारा में न जाने कितने लोग, दुनिया, और रहस्य बह गए। यह धारा कभी नहीं रुकेगी, क्योंकि इसकी कभी शुरुआत ही नहीं हुई। जो बना है, उसे खत्म होना ही है, लेकिन यह धारा, जिसे किसी ने न बनाया है, कोई इसे खत्म भी नहीं कर सकता। हम इस धारा में बह रहे हैं, न जाने कहाँ से यह धारा शुरू हुई थी, और कहाँ तक आई है, और आगे कितना जाएगी, इसका कोई अंत नहीं है, क्योंकि यह अनंत है।

इसी धारा की एक छोटी सी घटना, जिसे भगवान विष्णु नारायण देवी लक्ष्मी को बता रहे थे। भगवान अपनी निद्रा से बाहर आए, तो उनके माथे पर एक शिकन दिखाई दी। माता लक्ष्मी ने उनसे पूछा, “हे देव, क्या हुआ? आप थोड़े चिंतित प्रतीत हो रहे हैं।”

भगवान बोले, “नहीं देवी, बस थोड़ा सा व्याकुल हूँ।” देवी ने इसका कारण पूछा, तो भगवान बोले, “देवी, व्याकुल होने की कोई उचित वजह नहीं है, मगर एक बात, जिसके लिए मुझे थोड़ी व्याकुलता है, वह समीप आ रही है।”

देवी फिर पूछने लगीं, “ऐसा क्या है, देव, जो आपको व्याकुल कर रहा है?”

भगवान बोले, “देवी, समय आ रहा है।”

देवी बोलीं, “किसका, स्वामी?”

तो भगवान बोले, “समय ने यह नहीं बताया कि कब आएगा, मगर वह आ गया है, और अब समय बहुत नजदीक है। मुझे अपने कर्तव्यों से अब छुटकारा मिल जाएगा।”

देवी ने पूछा, “छुटकारा? मैं समझी नहीं, देव।”

तो भगवान बोले, “देवी, जब सृष्टि की रचना की गई थी, तो समय ने कहा था कि वह आएगा और मुझे मेरे कर्तव्यों से छुटकारा दिलाएगा। लगता है, मुझे अब जाना पड़ेगा।”

देवी ने पूछा, “मगर स्वामी, यह सृष्टि तो आपने बनाई है। जो आपने बनाया है, उसे छोड़कर आप कहाँ जाएंगे? और इस सृष्टि को आपसे बेहतर कौन जानता है, जो इसे आपकी तरह संचालित कर सके?”

भगवान मुस्कुराए और उन्होंने कहा, “देवी, देखिए, मैं समय की मांग पूरी कर रहा हूँ। मुझे पता है, मैं इस सृष्टि का पालनहार हूँ, मगर समय कुछ अलग है। मैंने इसके कहने पर यह सब किया है, और अब यह आ रहा है।”

देवी ने पूछा, “हे देव, क्या समय आपसे बड़ा है?”

तो भगवान विष्णु फिर मुस्कुराए और उन्होंने जवाब दिया, “देवी, समय मुझसे बड़ा नहीं है, मगर मेरा है। और इसीलिए वह मुझे बुला रहा है, या कहूं कि मुझसे मिलने आ रहा है। और बात यह है कि समय सबका है और यह सबकी मदद के लिए आता है, और अब यह मेरी मदद करेगा।”

देवी फिर पूछ बैठीं, “देव, यह क्या? सर्वश्रेष्ठ देव को आज किसी की मदद की आवश्यकता है? यह भला कैसे संभव है?”

तो भगवान फिर बोले, “नहीं देवी, अब मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ, जिससे आप भली-भांति अवगत हैं, मगर यह आपका मेरे लिए प्रेम है, जिसके कारण आप इसे देख नहीं पा रही हैं।”

तो देवी ने फिर पूछा, “ऐसा क्या है देव, जो मैं जानती हूँ, मगर मैं नहीं जानती?”

तो भगवान बोले, “देवी, यह मुझे कैसे पता हो सकता है? यह तो आपको पता होना चाहिए कि आप किन चीज़ों से अवगत हैं और क्यों आप मेरे प्रेम में उसे भूल बैठी हैं।”

देवी हँसने लगीं, और साथ ही साथ भगवान भी मंद-मंद हँसने लगे। भगवान ने कहा, “जो आज तक स्वयं देवी समझ नहीं पाईं।”

।।समयस्य कदाचिद् अपितु समयस्य ।।

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